राम बिरिछ ' कोइरी '
हम में से जिन लोगों ने 40 के दशक के उत्तरार्ध से गांव का रामलीला देखा है उनके लिए यह नाम एक तरह से रामलीला के पर्याय जैसा है।
तब रामलीला में प्रकाश के लिए गंज जला करता था । कौन सी कथा का आज मंचन होगा , कौन कौन सी चौपाई गाई जाएगी , किस पात्र क्या सम्वाद होगा इत्यादि बातें राम बिरिछ जी ही तय करते जान पड़ते थे । रामायण की एक मोटी प्रति उनके हाथ में बराबर रहती । राम दरबार से रावण दरबार तक घूम घूम कर सभी पात्रों से उचित सम्वाद वे ही कहवाया करते ।
लोग बताते की वे रामायण के अच्छे जानकार हैं । गांव में बहुत संस्कृत विद्वान थे किंतु रामलीला रामविरिछ जी के ही अगुवाई ही मंचित होती ।
दर्शक विशेष कर स्त्रियां शुद्ध रूप से रामकथा को ही समर्पित थे । हास्य विनोद के लिए जगह थी पर बहुत कम । दर्शकों को प्रेमाश्रु प्रायः देखा जा सकता था । लक्ष्मण मूर्छा और रामविलाप के अवसर पर तो लगभग सभी रोते हुए दिखते ।
रामविरिछ ' कोइरी ' उस रामलीला के प्राण और आत्मा सबकुछ थे । मैं जब भी उनको कहीं गांव में देखता तो उनके प्रति एक विशेष श्रद्धा पैदा होती । अपने गांव की ज्ञान परम्परा के सच्चे वाहक के रूप में मैं उनको स्मरण करता हूँ ।
लेखक- संतराज सिंह
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