गणेश बाबा की तृतीय पुण्यतिथि ……
करहिया गाँव के चहेते और करहिया गाँव के साहित्य के प्रथम पुरोधा के तृतीय पुण्यतिथि पर उनको शत शत नमन।
गणेश बाबा का जन्म 13 अप्रैल सन 1941 में हुआ था। इनके पिता का नाम स्व श्री रामदेव उपाध्याय और माँ का नाम स्व दुलारी देवी था। नौवी की परीक्षा पास करने के उपरान्त इन्होने संस्कृत का स्वाध्ययन किया। जीविका के लिए इन्होने दर्जी का कार्य चुना जो उस वक़्त ब्राम्हणो के लिए वर्जित था पर बाबा अपने क्रांतिकारी स्वभाव के कारण किसी का नही सुने और कई वर्षो तक उसी कार्य को करते रहे जब तक की उन्होंने किराने की दूकान न खोल ली।
बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी बाबा ने जब साहित्य में पदार्पण किये तो उनके जलवे राष्ट्रीय स्तर तक जा पहुंचा और उनकी हास्य की बेहतरीन कवितावों के कारण गोबर गणेश के उपनाम से नवाजा गया। बाबा बहुत हाज़िर जवाब भी थे उनके सामने कोई जल्दी टिक नही पाता था।
गाँव में उनके चाहने वाले इतने लोग थे की जब १४ जून २०११ को जब उनक मृत्यु हुई तो सहज किसी को विश्वास नही हुआ ।
आज भी ऐसा लगता है की बाबा हमारे बीच है। आज भी उनका ख्याल आते ही आँखे भर आती हैं। बाबा आज भी हम आपको याद कर रहे है और आप हमारे यादों में सदैव बने रहेंगे।
आये थे हंसाने रुला के चल दिए,
कसमें वादे सारे भुला के चल दिए,
पहले घर को सजाया फूल पत्तों से,
फिर हाथों से सब कुछ हिला के चल दिए।
पीयुष पराशर
करहिया गाँव के चहेते और करहिया गाँव के साहित्य के प्रथम पुरोधा के तृतीय पुण्यतिथि पर उनको शत शत नमन।
गणेश बाबा का जन्म 13 अप्रैल सन 1941 में हुआ था। इनके पिता का नाम स्व श्री रामदेव उपाध्याय और माँ का नाम स्व दुलारी देवी था। नौवी की परीक्षा पास करने के उपरान्त इन्होने संस्कृत का स्वाध्ययन किया। जीविका के लिए इन्होने दर्जी का कार्य चुना जो उस वक़्त ब्राम्हणो के लिए वर्जित था पर बाबा अपने क्रांतिकारी स्वभाव के कारण किसी का नही सुने और कई वर्षो तक उसी कार्य को करते रहे जब तक की उन्होंने किराने की दूकान न खोल ली।
बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी बाबा ने जब साहित्य में पदार्पण किये तो उनके जलवे राष्ट्रीय स्तर तक जा पहुंचा और उनकी हास्य की बेहतरीन कवितावों के कारण गोबर गणेश के उपनाम से नवाजा गया। बाबा बहुत हाज़िर जवाब भी थे उनके सामने कोई जल्दी टिक नही पाता था।
गाँव में उनके चाहने वाले इतने लोग थे की जब १४ जून २०११ को जब उनक मृत्यु हुई तो सहज किसी को विश्वास नही हुआ ।
आज भी ऐसा लगता है की बाबा हमारे बीच है। आज भी उनका ख्याल आते ही आँखे भर आती हैं। बाबा आज भी हम आपको याद कर रहे है और आप हमारे यादों में सदैव बने रहेंगे।
आये थे हंसाने रुला के चल दिए,
कसमें वादे सारे भुला के चल दिए,
पहले घर को सजाया फूल पत्तों से,
फिर हाथों से सब कुछ हिला के चल दिए।
पीयुष पराशर
कद्र हर शै की हुआ करती है खो जाने पर,
ReplyDeleteतुम उन्हें याद करोगे जो तुम्हें याद नहीं।
-राही सिहाबी