बुढ़ापा कोई अभिशाप नही.... !!!!!!

बुढ़ापा  कोई अभिशाप नहीं....!!!

        बड़ों के लिये हमारी इज्जत , प्यार, उनके लिये आदर ये केवल एक ही देश है पूरे विश्व मे वो है हमारा भारत। जहाँ बड़ों के सिरहाने नही बल्कि उनके कदमों मे बैठा जाता है, उनके पैर छुये जाते हैं , उनसे आशीर्वाद लिया जाता है । बड़े जो अपने छोटों को जो इतना प्यार देते हैं इतना स्नेह देते हैं, उनकी लम्बी उम्र की कामना करते हैं, वो देश है हमारा भारत....

       आज क्या इस देश में हमारे बुज़ुर्गों को भी वही स्नेह , वही प्यार उनके बुढ़ापे मे मिल पाता है । शायद नहीं.... एक पेड़ जो उम्रभर अपने मालिक को छाया और फल देता रहता है, चाहे कितनी भी धूप हो या बारिश , ये जानते हुये भी कि एक दिन जब वो बूड़ा हो जायेगा तो वही मलिक उसको काट देगा। पर पेड़ तब भी कभी स्वार्थी नही बनता । आज के इस युग मे बड़े लोग उस पेड़ की तरह हैं जो अपने बच्चों को बिना किसी परेशानी को देखते हुये उनकी परवरिश करते हैं उनको प्यार देते हैं और उसके बदले मे वो कुछ नहीं मांगते। गीतकार विष्णु सक्सेना जी ने बहुत सही लिखा है कि -

जिसको देखो वो सज़ा देता है ,
दोस्त बनकर के दगा देता है ,
वो तो माँ बाप का है दिल वरना
मुफ्त में कौन दुआ देता है।

        आज के इस युग मे कोई किसी का सगा नही है, यहां तक कि अगर आप भिखारी को भी रुपये ना दें तो वो दुआ नही देता पर् सही मायने मे वो हमारे माता पिता ही हैं जिनको आप कितनी भी गालियां दे लें पर उनके होठों से केवल दुआ ही निकलती है ।

        अपना भारत आज जिस संस्कृति के लिये जाना जाता है वही उसके विपरीत आज क्यों हो रहा है। आज हमारे कई हिस्सों मे जब माता– पिता बूढ़े हो जाते हैं तो उनको उस घर मे वो सम्मान नहीं मिलता जिसके वो हकदार हैं । कई जगह तो उन बूढ़े माता– पिता को घर से निकाल कर किसी वृद्धाश्रम मे डाल दिया जाता है , ये कह कर कि आप अब हमारी जिन्दगी मे अवरोध डाल रहे हैं। उनको घर मे बोलने का मौका नही देते हैं । आज कुछ जगह घर के बटवारे को लेकर बूढे माता पिता को बाहर निकाल दिया जाता है ।

        एक बच्चा जब पैदा होता है तब वो अपने माता पिता के बिना रह नहीं सकता था, वही बच्चा आज बड़े होकर उनके साथ ना रहने की बात करता है । जिन माता-पिता ने उस बच्चे को हाथ पकड़कर चलना सिखाया था वही बच्चा आज उनके बुड़ापे मे उनका साथ देने से इनकार कर दे रहा है । माता और पिता दोनो ही बच्चे के जीवन मे अपनी अलग अहमियत रखते हैं , पर वही बच्चे उनके बुड़ापे मे उनकी उस अहमियत को भूल जाते हैं। माँ के अन्दर जो ममता होती है वो दुनिया के किसी प्यार मे नहीं मिल सकती । अगर बच्चे उस माँ को नहीं समझ पाते तो जरा सोचिये क्या बीतती होगी उस बूढ़ी माँ पर। माँ पर तमाम शेर लिखने वाले शायर मुन्नवर राणा जी कहते हैं कि-

माँ इस तरह मेरे गुनाह को धो देती है ,
जब बहुत गुस्से में होती है तो रो लेती है ।।

        जिस बच्चे को उसके पिता ने अपने कन्धों पर बैठा कर झूले झुलवाये थे , आज वही बच्चा अपने पिता के झूलते कन्धों का सहारा बनने मे कतरा रहा है । उस बूढ़े पिता से प्यार की दो बात करने के लिये उसके पास समय नहीं है । जो पिता अपने बेटे के बचपन के हर एक लम्हे को नहीं भूल पाता , अब वो बुढापे मे उन लम्हों को सोच कर ही जीवन काट रहा है। डॉ. कुंअर बैचेन जी की कुछ पंक्तियां हैं कि-

अंगुलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे,
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे।
उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आंखों से ,
मैने खुद रो के बहुत देर हंसाया था जिसे।
अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढ़ा आता है ,
अपने कांधे पे कुंअर हंस के बिठाया था जिसे।

        भगवान ने भी ये वृद्धावस्था बहुत अजीब बनायी है, जिसमे इंसान को अपने प्रियजनो से केवल थोड़े प्यार की आस होती है उनकी बूढ़ी आँखें इस अपनेपन की प्यासी रहती हैं, जिसके सहारे वो इस अवस्था को बिना किसी शिकायत के हँसते हुये गुजार सकते हैं। माता-पिता चाहे कितने भी बड़े हो जायें वो अपने बच्चों के लिये ईश्वर के बराबर हैं, जिनका घर कहीं और नहीं बल्कि उनका परिवार है। मगर फिर भी उस बूढे दिल कि प्यास को बच्चे समझ कर भी ना समझ बनते हैं और बुढ़ापे मे उनका साथ छोड़ देते हैं। इस बात पर शबीना अदीब जी की कुछ पंक्तियाँ हैं कि –

दिल आइना भी है , काबा भी है , तेरा घर भी
हमारे दिल को कभी तोड़ कर नहीं जाना ,
मिला है घर नया माँ बाप की दुआ से तुम्हें
पुराने घर में इन्हैं छोड़ कर नहीं जाना ।।

        आज पूरे भारत मे ऐसे कई केंद्र हैं जो ऐसे बूढे लोगों का दर्द बाँटते हैं उन्हें एक नई ज़िन्दगी देने की कोशिश कर रहे हैं। पर असल मायने मे उनकी ज़िन्दगी उन संस्थाओं मे नही बल्कि उनके परिवार में है, उनसे मिले सम्मान में है , उनसे मिले प्यार मे है । शायर कलीम केसर जी ने इस प्यार को कुछ इस तरह बयां किया है कि –

अगर टूटा हुआ चश्मा मेरा बनवा दिया होता
तो मैं अच्छे शगुन अच्छे महूरत देख सकती थी ।
मुझे कब शौक़ दुनियाँ देखने का था मेरे बच्चे
मगर चश्मा लगा कर तेरी सूरत देख सकती थी ||

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