और अमर हो गए शहीद ओमकार सिंह



हर आंखें नम थीं ¨कतु मस्तक गर्व से ऊंचा। अश्रुधारा बह रही थी लेकिन जोश से भुजाएं भी फड़क रही थीं। एक ओर गम का माहौल था तो दूसरी ओर बहादुर बेटे की शहादत पर नाज। हजारों की भीड़ से बस एक ही आवाज, 'ओंकार नाथ ¨सह अमर रहें'। यह गूंज ऐसे ही नहीं हो रही थी बल्कि इसलिए कि जिले का लाल दुश्मनों से लोहा लेने के दौरान शहीद हो गया था।
'जब तक सूरज चांद रहेगा, शहीद तेरा नाम रहेगा' के उद्घोष से गहमर का नरवा घाट गूंज उठा। शहीद सैनिक के सम्मान में सारे मतभेद भुलाकर राजनीतिक व गैर राजनीतिक दल के लोग अंतिम यात्रा में शामिल हुए तो उनके चेहरे पर भी गम कम न था।
क्षेत्र के करहिया गांव के ओंकार नाथ सिंह  जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में सीआरपीएफ में एएसआइ पद पर तैनात थे। बीते 11 मई को वह अपने साथी तिलकराज के साथ पेट्रोल पंप की सुरक्षा के लिए आरओपी ड्यूटी में लगे थे। इसी दौरान उग्रवादियों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। ओंकार नाथ ¨सह ने भी काफी बहादुरी से उनका मुंहतोड़ जवाब दिया। शायद काल को कुछ और ही मंजूर था। अंतत: बहादुरी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए। अनंतनाग से इनका शव दिल्ली लाया गया। वहां से पटना। शव के साथ आए जयशंकर यादव एवं 11 सदस्यीय टीम सड़क मार्ग से इनके पैतृक गांव करहिया पहुंची।
शहीद का शव गांव में पहुंचते ही कोहराम मच गया। परिजनों के करुण क्रंदन से लोगों की आंखें भर आईं। बेटे का शव देखते ही मां बेहोश हो गईं। पत्नी ऊषा देवी का भी बुरा हाल था।
राजकीय सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई
हजारों की भीड़ के साथ शहीद का शव गहमर के नरवां गंगा घाट पर लाया गया। राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। सीआरपीएफ के कमांडेंट उदय प्रताप ¨सह, डीआइजी डीके त्रिपाठी ने पुष्पचक्र अर्पित कर अंतिम सलामी दी। जवानों ने फाय¨रग कर सलामी दी। इसके बाद एसडीएम कैलाश ¨सह, सीओ राममोहन ¨सह, थानाध्यक्ष हिमेंद्र ¨सह ने शहीद को श्रद्धासुमन अर्पित किया।
इस मौके पर मंत्री प्रतिनिधि मन्नू ¨सह, रितेश ¨सह, अशोक वर्मा, ग्राम प्रधान अयोध्या राम, मारकंडेय ¨सह, शिवकुमार, प्रमोद, राघवेंद्र मिश्र, वीरेंद्र आदि थे।

भर आई आंखें


स्वामी विवेकानंद कान्वेंट स्कूल के विद्यार्थी शहीद ओंकार नाथ सिंह  अमर रहें का उद्घोष करते रहे। साथ में चल रहे लोग भी उसे दोहराते रहे। शहीद के पुत्र अरविन्द सिंह ने  मुखाग्नि दी। यह दृश्य देख सभी लोगों की आंखे भर आईं।
माँ कामाख्या कम्प्यूटर के छात्रों ने मोमबत्ती जलाकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया और उनको श्रद्धांजलि दी। 

बेटे की शहादत पर गर्व


बेटे की शहादत पर गोकुल सिंह  से जब बात की गई तो रुंधे गले से उनका जवाब था कि दुनिया में किसी के लिए सबसे बड़ा दर्द बेटे के जनाजे को कंधा देना होता है। मुझे अपने बेटे की शहादत पर गर्व है। अपने इकलौते पोते को भी मातृभूमि की सेवा के लिए सेना में भेजने को तैयार हूं। शहीद के पुत्र अरविन्द सिंह ने बताया कि सेना में जाकर तिरंगा को बुलंद करने का काम करुंगा।
दैनिक जागरण से साभार… 

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