जगलू : एक संस्मरण


                 (संस्मरण में प्रयुक्त चित्र इन्टरनेट से लिया गया है क्योकि असली चित्र उपलब्ध नहीं है )

गांवों से निकल कर विभिन्न आधुनिक क्षेत्रों में अनेकों लोग सफल हो कर बड़े कीर्तिमान स्थापित किये हैं । आजकल गांवों के युवकों में उन्हें गर्व से " ग्राम गौरव " के रूप में याद करने और सम्मानित करने की एक नई ललक स्पष्ट देखने को मिलती है । इसके इतर गांवों में अनेक दक्ष कुशल प्रतिभावान व्यक्ति होते रहे हैं जिन्हें हम ठीक से पहचान भी नही पाते हैं । अपने गांव करहिया के जगलू मोची को मैं कुछ इसी तरह से याद करता हूँ । 40 , 50 के दशक में बहुत सम्पन्न सम्भ्रांत व्यक्ति ही जूता पहने देखने देखने को मिलता थे । मैं बचपन में गोबरधन बाबा जो गांव के सबसे सम्पन्न जमींदार थे और धनी बाबा जो किसी रजवाड़े में नौकरी से सेवा मुक्त व्यक्ति थे को ही जूता पहने देखा हूँ और वह भी जगत गंजी स्टाइल वाला । जिसे आम भाषा में चमरुई कहा जाता । लेकिन उस जमाने में भी जूतों के शौकीन लोग अवश्य होंगे तभी तो जगलू इतने जाने माने मोची कहलाते थे। हम बच्चों को जगलू के जूते पहनने की बहुत ख्वाइश रहती थी। मिलना न मिलना एक अलग बात है । वे चमरुई से लेकर कोल्हापुरी और टू पीस ऑक्सफोर्ड स्टाइल विथ हील्स आदि जूते बनाने में माहिर थे । लमुई पार बस्ती के उत्तरी छोर पर उनका घर था । उनके घर पर तरह तरह के जूते चप्पल टँगे हुए या रखे हुए देखने को मिलता । छोटे कद के एक स्निग्ध गहरे सांवले रंग के व्यक्तित्व । बड़ी बड़ी चमकती आंखें और अपनी कला और कर्म को मग्न भाव से समर्पित दो कार्य रत दक्ष हाथ । एक ऐसी शख्शियत जिसे अपनी विशिष्टता का लेश मात्र भी बोध नही था । सम्भवतः सन्त रविदास की परंपरा को जीता एक अपना स्वजन । मेरे मन में उनकी कुछ ऐसी ही छबि है।


लेखक : श्री संतराज सिंह ( भूतपूर्व रक्षा वैज्ञानिक )

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