( Shiv Mandir in Karahiya Ghazipur Pin 232339 )
गांव करहिया सामान्यतया और खास तौर पर मूलरूप से कृषि केंद्रित रहा है । अन्य सब रोजगार की गतिविधियां भी कृषि आधारित रही हैं । यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी है । सौ ढेढ़ सौ साल पहले ब्रिटिश सामराज्य ने फौज और पुलिस में लोगों को लेना शुरू किया। प्रथम विश्वयुद्ध के दस्तक देते ही यह प्रक्रिया तेज हुई और गांव करहिया के लोग सेना के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे लोअर ब्यूरोक्रेसी (अधिनस्थ नौकरशाही ), व्यापार, यातायात ,अध्यापन आदि क्षेत्रों में भी रोजगार के लिये प्रवेश किये ।
40 - 50 के दशक तक अपने गांव ने अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में एक विशेष मुकाम हासिल कर लिया था। गांव में एक सार्वजनिक पुस्तकालय जो कि गांधी पुस्तकालय के नाम से जाना जाता था, ब्रह्म दयाल दादा के दरवाजे पर 51/52 में खुल गया और कुछ लोग कम से कम 6/7 अपनी योग्यता के दम पर अध्यापन के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । इनमे से चार लोग प्लस टू विद्यालयों के प्रधानाचार्य के पद पर गए ।
मुझे ऐसा लगता है कि हमारे गांव करहिया में सफल शिक्षक बनने की एक अंतर्निहित प्रवृत्ति हो सकती है जिसे आज के युवा आजमा सकते हैं और आजमाया भी है जिसमे प्रमुख रूप से डॉ पवन खरवार और कृष्णानन्द उपाध्याय का नाम लिया जा सकता है
शिक्षा का एक व्यापक रोजगार संसार है । स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटी तक वेतनमान भी आकर्षक है। शिक्षा की दयनीय स्थिति जो अभी है वह ऐसे ही नही रह सकती। एक नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार है और सब संकेत ये हैं कि शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया जाना सम्भव है। यह ख्याल कई दिनों से घूम रहा था जिसे शेयर कर रहा हूँ ।
लेखक : श्री संतराज सिंह ( भूतपूर्व रक्षा वैज्ञानिक )
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